हम सभी मिठास के शिकार होते हैं ज़िन्दगी में, कभी न कभी. केक हो या गुलाब-जामुन, भई कुछ मीठा ज़रूर होना चाहिए, हैं ना?
हमारे दैनिक जीवन-शैली में ये 'मिठास' की चाहत एक कमज़ोरी सी बनती जा रही है. आधुनिकीकरण ने हमें मेहनतकश बनने से रोक रखा है, और खाने की चाहत हमारी उतनी ही रह गयी है जितना कि एक मेहनतकश इंसान दिनभर की मजदूरी के बाद खाता है. नतीजा 'डाईटरी- इम्बैलेंस'. भोजन में शर्करा यानि कार्बोहाईड्रेट की अधिकता हमारे स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव डालती है. उधाहरण के तौर पर, अत्यधिक शर्करा सेवन:
१. सीधा प्रभाव करती है वसा (Fat) के तौर पर जमा होकर, जो कि ओवरवेट या मोटापे का मुख्य कारण है.
२. रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा सामान्य से बहुत ऊंचे स्तर पर रहती है, जिससे इंसुलिन का स्राव बढ़ता है और मधुमेह की स्थिति बनती है.
३. ग्लूकोज़ की ऊंची मात्रा मस्तिष्क को और अधिक शर्करा सेवन के लिए लालायित करती है, और ये कुचक्र चलता ही रहता है.
शोधकर्ताओं ने ये पाया है कि शर्करा के जो तत्व और ज्यादा खाने के लिए दिमाग में लालसा/craving बढाते हैं, उनकी तुलना मोर्फीन या हेरोइन जैसे लत से की जा सकती है. यानी कि आज के सन्दर्भ में 'मिठास' इच्छा से कहीं ऊपर, एक लत की संज्ञा लेती जा रही है. एक ऐसी लत जो कोकेन जैसे ड्रग्स से भी ज्यादा प्रभावकारी है. शर्करा की इस लत का कारण 'लेप्टीन' नामक हार्मोन है जो मीठे चीज़ों के प्रति हमारा आकर्षण बढाता है. शर्करा जब वसा के तौर पर कोशिकाओं में जमा होती है, तो उसके साथ ही 'लेप्टीन' का रक्त में अत्यधिक स्राव होता है. और धीरे-धीरे हमारा तंत्र अत्यधिक लेप्टीन का आदि हो जाता है. नतीजा ये कि दिमाग को सिग्नल ही नहीं मिलता कि 'पेट भरा हुआ है और भूख नहीं लगी है'. हमेशा कुछ न कुछ खाने की इच्छा होती रहती है. और इस तरह ये कुचक्र हमारे तंत्र में स्थापित हो जाता है.
अब सवाल ये उठता है कि मिठास के इस लत से बचा कैसे जाए. क्योंकि अगर हमने ये लत छोड़ दी तो एक स्वास्थ्यकर जीवन जीने के उद्देश्य को हम आसानी से पा सकते हैं. लेकिन लत चाहे किसी भी चीज़ की हो- सिगरेट, शराब या ड्रग्स की, छोड़ना थोडा मुश्किल ज़रूर होता है. फिर भी कुछ मुख्य बिन्दुओं पर हम गौर कर सकते हैं:
१. लो-फैट और फैट फ्री को टा-टा: जिन प्रोसेस्ड फ़ूड में फैट की मात्रा कर की जाती है, उनमे अधिकांशतः शर्करा की मात्रा ज्यादा कर देते हैं. ऐसी चीज़ें हमें जितना लाभ नहीं देती, उससे ज्यादा हानि पहुंचती हैं.
२. एक्स्ट्रा मीठा- नो नो: प्राकृतिक तौर पर मीठी चीज़ें जैसे फल, डेट्स आदि सुपाच्य होते हैं और रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा नहीं बढाते. कृत्रिम शर्करा का सेवन (जैसे कि चौकलेट, मिठाइयाँ, केक, कूकीज, जिनमे बहुत अधिक मात्रा में शक्कर डालते हैं) कम-से-कम करना चाहिए.
३. व्यायाम और योगा: हल्का फुल्का व्यायाम न सिर्फ वसा को कम करने के लिए ज़रूरी है, बल्कि इससे रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा भी कम रहती है और शर्करा की लत धीरे-धीरे घटती है.
४. खाएं और बिलकुल खाएं: भोजन नियमित करें. पेट भरा होता है तो मिठास की Craving कम होती है. संतुलित आहार की आदत डाईटिंग जैसे नुस्खों से ज्यादा कारगर होता है, ये भी शोध में पाया गया है. कुछ मीठा खाने की इच्छा हो तो ड्राई-फ्रूट्स या मीठे फल खाएं.
स्वस्थ जीवन जीना जितना आसान है उतना ही मुश्किल. अपने आहार के प्रति सदैव सचेत रहना अति-आवश्यक है. अगर मिठास की बहुत बुरी लत लगी हुई है तो ऐसा भी होता है कि कुछ विटामिन्स शरीर को उचित मात्रा में नहीं मिल पा रहे हैं. ऐसी स्थिति में संतुलित और नियमित आहार सर्वोत्तम है, न कि डाईटिंग!
नोट: लेखक मिशिगन यूनीवर्सिटी में परा-स्नातक शोधकर्ता हैं, और स्वास्थ्य एवं आरोग्यं के प्रति ये उनके निजी तथा समकालीन शोधकर्ताओं से उद्धृत विचार हैं.
चित्र : गूगल से साभार