Wednesday, September 22, 2010

जल: पियें मगर ध्यान से : भाग २: कब, कितना और कैसे

 Key words : Cough , Common Cold , Digestion

कभी कभी आपने देखा होगा की कुछ लोगों को सर्दी यानी 'Common Cold ' अक्सर हो जाया करती है. कफ से कई लोग हमेशा ही परेशान रहते हैं. कुछ लोगों के सिर में हमेशा ही हल्का सा दर्द रहता है, थोड़ा थोड़ा भारीपन सा लगता है सिर में. जहाँ एक ओर पानी हमारी प्यास बुझाती है, हमारे शरीर को शीतलता प्रदान करती है और हमारे पाचन-तंत्र को सुचालित रखने में मदद करती है, वहीं दूसरी ओर ये सारी तकलीफें भी दे सकती है.

पानी पीने के ऊपर आयुर्वेद तथा अन्य प्राकृतिक उपचारों में जो तथ्य शोध करके लिखे गए हैं उनमे से कुछ निम्नलिखित हैं:
कब, कितना पियें और कब ना पियें:
१. भोजन के ठीक पहले पानी ना पियें.
२. भोजन करते समय थोड़ी मात्रा में पानी पियें.
३. भोजन के उपरांत पानी ना पियें अथवा बहुत कम पियें.
४. भोजन के ३-४ घंटे बाद १-२ गिलास पानी पीना स्वास्थ्यकारी है.
५. प्रातः शौच के पहले पानी पीना लाभदायक होता है.
६. देर रात में ज्यादा पानी पीना हितकर नहीं है.

ये सारी बातें बड़े-बुज़ुर्ग हमें अक्सर बताया करते हैं. कई घरों में तो रात में ताम्बे के बर्तन में रखे पानी को सुबह पीने की प्रथा है. पर ये महज़ नियम नहीं हैं कि हमें इनका पालन करना है. इन तथ्यों के पीछे साधारन सा वैज्ञानिक कारण है जो हम आसानी से समझ सकते हैं.
जब हम खाना पकाते हैं तो सारी चीज़ें एक साथ नहीं डालते. गृहिणियों को ये बात पता होती है कि कौन सी चीज़ कितनी देर में पकती है. इसीलिए पहले तेल में मसाले को भून लेते हैं, फिर काटी हुई सब्जियां डालते हैं. थोड़ा पक जाने पर ही पानी डालते हैं. सोचिये अगर किसी ने कढाई में पहले ही ढेर सारा पानी डाल दिया हों और फिर उसमे मसाले डाले तो क्या होगा! यही नहीं, अगर पानी वाली गर्म कढाई में तेल डाला तो क्या होगा?! हमारा पेट (Stomach) भी कुछ ऐसा ही सिस्टम है. अगर भोजन के पहले ढेर सारा पानी पी लिया, तो निसंदेह पाचन-तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. ऎसी स्थिति  में जो पेट में पाचन के enzymes होते हैं, वो dilute हों जायेंगे और खाने का सही पाचन नहीं हों सकेगा. फलस्वरूप, हमारा पेट अपच, खट्टी डकारों से ग्रसित हों सकता है. शरीर में कमज़ोरी आ सकती है, हमेशा स्फूर्ति की कमी महसूस हों सकती है.
सुबह खाली पेट पानी पीने से, पिछले दिन का जो भी कचरा पेट में रह गया हों, वह शौच के साथ बाहर निकल आता है. एक तरीके से ये पेट की सफाई है. ऐसा करने से पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है, और आगे के लिए भोजन का पूर्ण पाचन होता है. इसी वजह से हमारे शास्त्रों में उपवास को महत्व दिया जाता है.
साधारणतः भोजन को पेट से आंत की तरफ जाने में ३-४ घंटे लगते हैं. इस समय तक सारा भोजन पेट में पच चुका
होता है. अतः, इस समय पानी पीने से पचे हुए भोजन के शरीर द्वारा समावेश (assimilation) में मदद मिलती है.

Image courtesy : http://www.cartoonstock.com/

Tuesday, September 21, 2010

जल: पियें मगर ध्यान से : भाग १: शुद्धता



हमारे शरीर का लगभग सत्तर प्रतिशत हिस्सा जल (पानी) है. हिन्दी में तो ऐसा भी कहते हैं कि 'जल ही जीवन है'. अतः जल के Physiological aspects को समझना सुलभ स्वास्थ्य के लिए पहली सीढ़ी है.
१. शुद्धता:
जल कि शुद्धता का परिमाप क्या हो? देखा जाये तो सबसे शुद्ध जल तो 'Distilled Water' है. पर हम 'Distilled Water' नहीं पी सकते. कारण यह है कि हमारी कोशिकाओं में जो जल है, उसमे कई salts होते है, जो शरीर के अंदरूनी pH को संतुलित रखते हैं. हमारी कोशिकाएं एक फैक्ट्री कि तरह है जहाँ कई reactions चल रहे होते हैं. ये साल्ट्स इन कोशिकाओं को विषाक्त अवयवों के हानिकारक प्रभाव से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. विज्ञान की भाषा में इसे 'Osmoregulation' कहते हैं. 'Mineral water ' का अर्थ है कि जल में इन salts/ions की मात्रा संतुलित हो. इनकी मात्रा अगर अधिक हो, तो भी शरीर पर कुप्रभाव पड़ते हैं. कोशिकाओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है, किडनी को रक्त-शुद्धी करने में परेशानी होती है. अतः यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि पानी ज़्यादा खारा या नमकीन ना हो. कभी कभी जल में कुछ साल्ट्स ऐसे भी होते हैं जो शरीर के लिए अछे नहीं होते, जैसे carbonates.
(i) पानी उबालना:
मैं यह नहीं कह रहा कि पानी हमेशा उबाल कर ही पिए. पर एक बार जो पानी आप पीते हैं, ज़रा उसे उबाल कर चेक कर ले.यदि पानी उबालने के बाद बर्तन के अंदरूनी किनारे और base की सतह पर साल्ट्स जमते हैं तो इसका मतलब है की आपको एक water purifier ले लेनी चाहिए.  आप किसी लोकल प्रयोगशाला में भी salt -contents की चेकिंग करा सकते हैं. अगर आप water purifier नहीं लेना चाहते, तो पानी को उबाल कर ही पियें, और हों सके तो उसमे थोडा सा एलेक्ट्रल या ORS डाल सकते हैं (५ लीटर में १-२ चम्मच). उबले पानी को छानना ना भूलें.
(ii) Water purifiers:
बाज़ार में कई ब्रांड्स मौजूद हैं. क्या करें, कौन सा सही है? जैसा कि ऊपर लिखा है, अगर पानी उबालने पर साल्ट्स जमते हैं, तब आपको ऐसा purifier लेना चाहिए जिसमे Reverse Osmosis (RO) सिस्टम मौजूद हों.
UV  और ozone  treatment की सुविधा जल में मौजूद कीटाणु और विषाणुओं को मारने के लिए होती हैं. यदी जल का श्रोत स्थायी है, जैसे की कोई टैंक, तो उसमे हानिकारक कीटाणुओं के पनपने की संभावना भी ज्यादा होगी. ऐसी स्थिति में UV  अथवा ozone  treatment वाले purifiers उचित हैं.

आगे के भाग में हम देखेंगे की जल को किस प्रकार हम औषधी जैसे प्रयोग कर सकते हैं. जल कब पियें, कैसे पियें और कितना पियें ये सारी बातें स्वास्थ्य के लिए महत्व रखती हैं.

http://www.who.int/household_water/research/technologies_intro/en/index.html

(Image courtsey: http://www.caslab.com/Drinking-Water-Testing/Drinking-Water.jpg)

Saturday, September 18, 2010

एक नयी दृष्टि - प्रकृति और आधुनिक तकनीकों का संगम

आधुनिक वैज्ञानिक संशोधनों से आरोग्य के विषय में हमारा ज्ञान बहुत बढ़ा है. साथ ही साथ हमारी पारंपरिक प्राकृतिक पद्धतियाँ भी सुलभ स्वास्थ्य के लिए सदियों से लाभकारी रही हैं. देवेन्द्र वोरो जी के अक्युप्रेषर के अभियान से बचपन से ही मुझे इस विषय पर काम करने में काफी प्रोत्साहित किया है.  ब्लौगों पर आयुर्वेद से सम्बंधित अथाह सामग्री देखकर ये भी एहसास होता है कि लोग जागरूकता के साथ इन्टरनेट के माध्यम से भी प्राकृतिक स्वास्थ्य पद्धतियों का प्रचार - प्रसार कर रहे है. Biomedical sciences के एक शोधकर्ता होने कि वजह से मुझे इस बात कि ज़रुरत महसूस हुई कि आधुनिक वैज्ञानिक शोधों तथा तकनीकों को प्राकृतिक पद्धातित्यों के साथ जोड़कर आपके समक्ष रखने का प्रयास करूं. आशा है हिन्दी में लिखा यह ब्लॉग भारतीय जनमानस में प्राकृतिक और आधुनिक पद्धातित्यों के इस संगम तथा विमर्श को तार्किक ढंग से सुलभ स्वास्थ्य के लिए प्रेरणादायी रहेगा.
http://www.lifepositive.com/body/substance-abuse/traditional-therapies/acupressure/acupressure-acupuncture.asp
http://www.acupressure.com/
http://en.wikipedia.org/wiki/Yoga
http://merasamast.blogspot.com/